सुबह सो कर उठने से ले कर रात को पुनः सोने तक, हमारे मस्तिष्क में निरंतर विचार चलते ही रहते हैं|
क्या आप जानते हैं, सोचने का एक निश्चित विज्ञान है? और विज्ञान के नियमों की तरह ही सोचने का भी एक नियम है, जो कि निरंतर काम कर रहा है – या तो हमारे अनुकूल या हमारे विपरीत|
अगर हम इस नियम का प्रयोग अपने लिए करें तो हम उन सभी वस्तुओं व लक्ष्यों को हासिल कर सकते हैं जो हम करना चाहते हैं|
क्या आप जानते हैं, सोचने का एक निश्चित विज्ञान है? और विज्ञान के नियमों की तरह ही सोचने का भी एक नियम है, जो कि निरंतर काम कर रहा है – या तो हमारे अनुकूल या हमारे विपरीत|
अगर हम इस नियम का प्रयोग अपने लिए करें तो हम उन सभी वस्तुओं व लक्ष्यों को हासिल कर सकते हैं जो हम करना चाहते हैं|
प्रकृति के नियम सभी जीवों पर समान्तर रूप से लागू होते हैं| चाहें हम उन्हें जानते हों अथवा नहीं, हम उन नियमों को मानते हों या नहीं| उदाहरण के लिए गुरुत्वाकर्षण का नियम, चाहें आप इस नियम को मानें या न माने, आप ऊंचाई से अगर कूदेंगे तो जमीन पर ही गिरेंगे|
उन्ही नियमों में से एक महत्वपूर्ण नियम है – बोने और काटने का नियम(Law of Sow and Reap)| यह नियम जितना पेड़-पौधों के लिए कार्य करता है उतना ही हम मनुष्यों के जीवन में भी काम करता है|
हमारा मस्तिष्क भी एक उपजाऊ जमीन की तरह ही है, जिसमे आप जैसे विचार बोते हैं वैसा ही परिणाम अपने जीवन में पाते हैं|
आइये, पहले हम इस नियम को समझते हैं, उसके बाद जानते हैं की यह हमारे जीवन में किस तरह से प्रभाव डालता है|
बोने और काटने का सिद्धांत
- प्रत्येक बीज में एक सम्पूर्ण वृक्ष बनने की क्षमता होती है|
- उपजाऊ मिटटी में जिस भी प्रकार का बीज डाला जाएगा, उसी प्रकार की फसल मिलेगी| नीम के बीज से आम नहीं निकल सकता है|
- उपजाऊ मिटटी में अगर कुछ न उगाया जाए, तो प्रकृति उसमें अपने आप खर-पतवार उगा देती है|
- प्रकृति बिलकुल भी भेदभाव नहीं करती है, जैसा भी बीज उगाया जाए वैसा ही फल मिलता है|
- एक अच्छी फसल को उगाने के लिए मेहनत करनी पड़ती है| अच्छी फसल को सूर्य के प्रकाश, और समय-समय पर खाद-पानी की जरुरत पड़ती है।
- फसल के पास से खर-पतवार को भी निरंतर साफ़ करते रहना पड़ता है|
- फसल बोने का और काटने का एक निश्चित मौसम होता है| प्रकृति में कुछ भी चीज तुरंत नहीं मिलती, उचित परिश्रम के बाद उचित समय पर लाभ होता है|
- आप जितने भी बीज बोते हैं, सभी से फसल नहीं उगती
- जितने बीज आप बोते हैं, उस से कहीं अधिक मात्रा में पैदावार होती है, नए बीज बनते हैं
अब समझते हैं कि बोने और काटने का सिद्धांत हमारे जीवन में कैसे प्रभाव डालता है|
- हमारा मस्तिष्क एक उपजाऊ मिटटी के समान है और हमारा प्रत्येक विचार एक बीज के समान है| यह विचार पर निर्भर करता है कि बीज एक फलदार वृक्ष का है या किसी कंटीली जहरीली झाडी का|
- मस्तिष्क में जिस भी प्रकार का विचार डाला जाएगा, उसी प्रकार के परिणाम जीवन में मिलेंगे| सकारात्मक विचार जीवन में सुखदायक परिणाम देंगे और नकारात्मक विचार जीवन में कष्टदायक परिणाम देंगे|
- उपजाऊ मिटटी में अगर कुछ न उगाया जाए, तो प्रकृति उसमें अपने आप खर-पतवार उगा देती है| इसी प्रकार अगर हम सजग रह कर सकारात्मक विचार नहीं सोचेंगे, तो हमारा मस्तिष्क अपने आप ही नकारात्मक विचारों से भर जाएगा|
- प्रकृति बिलकुल भी भेदभाव नहीं करती है, जैसा भी बीज उगाया जाए वैसा ही फल मिलता है| मस्तिष्क सकारात्मक और नकारात्मक विचारों में फर्क नहीं समझता| और सोचे गए प्रत्येक विचार को पूर्ण करने में जुट जाता है|
- सकारात्मक विचारों को सजगता से निरंतर सोचते रहना होता है| हमारी भावना का बल जिन विचारों को मिलता है वो जल्दी ही साकार होते हैं| सबसे प्रबल भावनाएं हैं प्रेम, भय, आस्था और शंका|
- एक सतर्क माली की तरह हमको अपने मस्तिष्क रूपी बगीचे की प्रतिक्षण देखभाल करते रहना चाहिए| और नकारात्मक विचारों को तुरंत ही हटा देना चाहिए|
- यह हमारे लिए एक वरदान के समान है की हमारे सोचे गए सभी विचार तुरंत ही साकार नहीं हो जाते| वरना सोच कर देखिये क्या होता अगर आज के सोचे गए आपके प्रत्येक विचार सच हो गए होते|
- सभी सोचे गए विचार साकार नहीं होते हैं| जो विचार लगातार हमारे मस्तिष्क में चलते रहते हैं और जिनसे हमारी भावनाएं जुडी होती हैं, वही विचार साकार होते हैं|
- एक विचार अपने जैसे और अपने से अधिक शक्तिशाली विचार को आकर्षित करता है| अगर आप नकारात्मक सोच रहे हैं तो आप लगातार और नकारात्मक ही सोचते चले जायेंगे| जब तक कि आप सजग हो कर अपने विचारों को न बदलें|
बोने और काटने का सिद्धांत हमारे विचारों के द्वारा हमारे जीवन में हर क्षण प्रभाव डालता है| आज हमारे जीवन में हम जो कुछ भी हैं, वह हमारे अब तक के सोचे गए जाने-अनजाने विचारों का परिणाम है| अगर हमको अपने जीवन में कुछ बदलाव करना है तो हमको अपने विचारों को बदलना होगा|
“हमें अपने प्रबल शत्रु से इतना खतरा नहीं है, जितना कि हमारे बिना निगरानी के विचारों से है” – महात्मा बुद्ध
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चलते चलते :-
“सोचिए कि आप क्या सोच रहें हैं और आपको क्या सोचना है|”
आपकी सेवा में,
सुशांत त्रिपाठी
Divine Touch
Exploring the divine within...
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Nicly explain
ReplyDelete👌 beautiful
ReplyDeleteIt's great sir...🌺
ReplyDeleteNice write up!Very impressive.Waiting for ur next blog.. 😊
ReplyDeleteWow great chachu !!
ReplyDeleteThankyou Everyone, for your feedback.
ReplyDeleteNice sir
ReplyDeleteNice blog sir
ReplyDeleteNice blog sir
ReplyDeleteAwesome blog post
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