दोस्तों, हमने पिछले ब्लॉग में, विचारों के बोने और काटने के नियम के बारे में जाना था |
आइये जानते हैं कि मस्तिष्क में विचार कैसे उत्पन्न होते हैं?
बाहरी संसार की किसी भी घटना या वस्तु के प्रति, हमारी भावनाओं से उत्पन्न, हमारी प्रतिक्रिया(रिएक्शन) से विचारों का जन्म होता है| प्रेम, ख़ुशी, आस्था और आशा जैसी प्रबल भावनाओं से सकारात्मक विचारों की उत्पत्ति होती है| क्रोध, भय, शंका और चिंता जैसी भावनाओं से नकारात्मक विचारों की उत्पत्ति होती है|
मानव मस्तिष्क लगभग सौ अरब कोशिकाओं से निर्मित होता है, जिनको नयूरोंस(neurons) कहते हैं| यह नयूरोंस आपस में एक ट्रिलियन से अधिक कनेक्शन से जुड़े होते हैं| प्रत्येक विचार के सोचने पर एक कनेक्शन बनता है जिस से मस्तिष्क में एक कंपन (वाईब्रेशन) पैदा होती है| सामान प्रकार के विचारों को सोचने पर एक आवृत्ति (frequency) उत्पन्न होती है| यह कंपन हमारे शरीर में एक उर्जा उत्पन्न करता है| सकारात्मक विचारों से उच्च आवृत्ति होती है, जिस से शरीर की उर्जा बढती है| और नकारात्मक विचारों की कम आवृत्ति होती है, जिस से शरीर की उर्जा कम होने लगती है|
क्या हम अपने मस्तिष्क में विचारों को रोक सकते हैं?
हमारे मस्तिष्क मे हर पल विचार जन्म लेते हैं और मरते हैं| जिन विचारों को हमारी भावनाओं का बल मिलता है वो विचार कुछ देर रुक कर मिट जाते हैं| हम विचारों के उत्पन्न होने और मिटने के सिलसिले को ध्यान और प्राणायाम द्वारा कम जरुर कर सकते हैं, लेकिन समाप्त नहीं कर सकते|
अगर हम अपने विचारों के प्रति सजग नहीं होते है, तो हम जाने अनजाने न जाने कैसे परिणामों को अपने जीवन में आकर्षित कर लेते हैं|
भावना बदलें, परिणाम बदल जायेंगे
भावनाओं और हमारे विचारों का सीधा संबंध है| हमारी भावनाओं के अनुसार हमारे विचार बनते हैं, हमारे विचारों से हमारे कर्म बनते हैं, और हमारे कर्मो के अनुसार ही हमको फल मिलता है| उदहारण के लिए, अगर हमारे मन में परिणाम के लिए आशा से परिपूर्ण विचार होंगे, तो हमारा आत्म-विश्वास बढेगा और हम उसी के अनुसार कार्य करेंगे, जिस से सफलता मिलने की संभावना बढ़ जाएगी| लेकिन, अगर हमारे मन में परिणाम के लिए शंका या चिंताजनक विचार होंगे, तो हमारा आत्म-विश्वास कम होगा, जिस वजह से हम अपना सर्वोत्तम प्रयास नहीं दे पाएंगे, और सफलता प्राप्त करने कि संभावनाएँ कम हो जाएँगी|
भगवान् श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है – कर्म करो, फल की चिंता मत करो|
भावनाओं और हमारे विचारों का सीधा संबंध है| हमारी भावनाओं के अनुसार हमारे विचार बनते हैं, हमारे विचारों से हमारे कर्म बनते हैं, और हमारे कर्मो के अनुसार ही हमको फल मिलता है| उदहारण के लिए, अगर हमारे मन में परिणाम के लिए आशा से परिपूर्ण विचार होंगे, तो हमारा आत्म-विश्वास बढेगा और हम उसी के अनुसार कार्य करेंगे, जिस से सफलता मिलने की संभावना बढ़ जाएगी| लेकिन, अगर हमारे मन में परिणाम के लिए शंका या चिंताजनक विचार होंगे, तो हमारा आत्म-विश्वास कम होगा, जिस वजह से हम अपना सर्वोत्तम प्रयास नहीं दे पाएंगे, और सफलता प्राप्त करने कि संभावनाएँ कम हो जाएँगी|
भगवान् श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है – कर्म करो, फल की चिंता मत करो|
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चलते चलते:
“मनुष्य का दिमाग ही सब कुछ है| जो वह सोचता है, वही बन जाता है|”
आपका मित्र,
सुशांत त्रिपाठी
Divine Touch
Exploring the divine within...
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